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Baby Care
5 December 2023 को अपडेट किया गया
पंचतंत्र की कहानियाँ (panchatantra ki kahaniya in Hindi) मौखिक और नैतिक शिक्षाओं का पिटारा हैं जो बेहद रोचक और सरल तरीके़ से समझाई गई हैं. इन कहानियों के माध्यम से ख़ासतौर पर बच्चों को जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद मिलती है और अच्छे नैतिक मूल्यों की प्रेरणा मिलती है. पंचतंत्र यानी (panchtantra meaning in Hindi) कि ‘पाँच सिद्धांत’ की इन कथाओं (panchtantra ki katha) के माध्यम से हम दूसरों की ग़लतियों से सीख कर सही रास्ते पर चलने का प्रयास कर सकते हैं.
यहाँ हम आपके लिए लाये हैं ऐसी ही पाँच मज़ेदार (panchatantra kahani in Hindi) कहानियाँ. तो चलिये शुरू करते हैं पंचतंत्र की कहानियाँ (panchtantra kahani in Hindi).
एक ग़रीब बढ़ई उज्वलक, रोजगार की तलाश में जंगल से गुजरता हुआ दूसरे गाँव जा रहा था. उसी जंगल में एक ऊँटनी बच्चे को जन्म दे रही थी. बढ़ई उन दोनों को अपने घर ले आया और कुछ ही दिनों में ऊँटनी स्वस्थ और उसका बच्चा जवान हो गया. बढ़ई ने बच्चे के गले में घंटी बाँध दी, ताकि वो कहीं भी जाए तो आवाज़ से उसका पता चल सके.
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ऊँटनी दूध देती थी और उसका बच्चा सामान ढोता था. कुछ दिनों में उसने एक ऊँटनी और खरीद ली. अब उसके पास कई ऊँट-ऊँटनियां हो गए और जीवन आराम से चलने लगा.
सब ऊँट-ऊँटनियां मिलकर रहते थे लेकिन गले में घंटी बंधी होने के कारण ऊँटनी के बच्चे को बहुत घमंड था. जब सारे ऊँट-ऊँटनियां जंगल में एक साथ पत्ते खाने जाते थे तो वो झुण्ड से अलग हो जाता था. उस जंगल में एक शेर भी रहता था. सब ने उसे गले से घंटी उतारने की सलाह दी क्योंकि आवाज़ से शेर को उनका पता चल जाता था. लेकिन उसने इस बात को नहीं माना.
एक दिन जब ऊँट-ऊँटनियाँ पत्ते खाकर वापस गाँव लौट रहे थे. तो वो सबसे अलग जंगल में चला गया. उसकी घंटी की आवाज़ सुनकर शेर वहाँ आया और उसने उसे मार दिया.
पंचतंत्र की (panchtantra in Hindi) इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि घमंड करने से आपका अंततः नाश हो जाता है.
एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी थी. ब्राह्मण के परिवार के साथ ब्राह्मणी की अक्सर लड़ाई होती थी. इसलिए वह पत्नी के साथ किसी दूसरे देश में बसने के लिए निकल पड़ा. रास्ते में पत्नी को प्यास लगी तो ब्राह्मण उसके लिए पानी लेने चला गया. जब वापस आया तो देखा कि ब्राह्मणी मर चुकी थी. वह दु:खी होकर भगवान से प्रार्थना करने लगा. तभी आकाशवाणी हुई "अगर ब्राह्मण अपने प्राणों का आधा भाग दे देगा तो ब्राह्मणी जिन्दा हो जाएगी." ब्राह्मण इस बात के लिए मान गया और उसकी पत्नी जिन्दा हो गयी.
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फिर वे एक नगर में पहुँचे जहाँ ब्राह्मण भोजन लाने चला गया. वहाँ ब्राह्मणी ने एक सुंदर लेकिन लंगड़े जवान व्यक्ति को देखा और वो दोनों हँसकर बातें करने लगे. दोनों ने एक दूसरे के लिए आकर्षण महसूस किया और साथ रहने का फै़सला किया.
भोजन के बाद जब ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने फिर से यात्रा शुरू की तो ब्राह्मणी ने उस लंगड़े व्यक्ति को भी साथ ले चलने के लिए कहा. ब्राह्मण ने कहा कि उसे संभालना मुश्किल होगा तो ब्राह्मणी ने उसे पिटारी में रखने की सलाह दी.
रास्ते में ब्राह्मणी और उस लंगड़े जवान ने ब्राह्मण को एक कुएँ में धक्का दे दिया और आगे चल दिए.
अगले नगर में सिपाहियों ने उनकी तलाशी ली और उन्हें पिटारी में छिपा हुआ लंगड़ा मिला. ब्राह्मणी ने लंगड़े को अपना पति बताया और राज्य में शरण देने के लिए कहा. वहाँ के राजा ने उसकी आज्ञा दे दी.
वहाँ कुएँ में गिरे ब्राह्मण को कुछ साधुओं ने बचा लिया और वो भी उसी नगर में पहुँच गया. ब्राह्मणी ने राजा को कहा कि वो उसके लंगड़े पति का पुराना दुश्मन है और राजा ने ब्राह्मण को मारने की आज्ञा दी.
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तब ब्राह्मण ने राजा से कहा कि ब्राह्मणी के पास उसका कुछ है, जो उसे वापस चाहिए. ब्राह्मणी ने इस बात से इनकार कर दिया तो ब्राह्मण ने याद दिलाया कि उसके आधे प्राण ब्राह्मणी के पास हैं, जिसके बारे में देवताओं को भी पता है.
देवताओं के डर से ब्राह्मणी आधे प्राण वापस देने के लिए तैयार हो गयी और ऐसा कहते ही उसकी मृत्यु हो गयी. इसके बाद ब्राह्मण ने सारी बात राजा को बताई.
इस कहानी से (panchtantra ki kahani Hindi) यही सीख मिलती है कि धोखा देने वाले का स्वयं विनाश हो जाता है.
चार ब्राह्मण पढ़ने के लिए कान्यकुब्ज गए और 12 साल की पढ़ाई के बाद वे शास्त्रों के ज्ञाता हो गए. परंतु उनमें व्यवहार-बुद्धि बिल्कुल नहीं थी. जब वे घर वापस आ रहे थे तो उन्हें दो रास्ते मिले जिससे वो भ्रमित हो गए. तभी वहाँ से एक अर्थी निकली जिसके साथ बहुत से महाजन जा रहे थे.
उन्हें देखकर एक ब्राह्मण ने कहा "महाजनो येन गतः स पन्थाः" अर्थात् जिस रास्ते पर महाजन जाएँ, वही सही है. चारों मूर्ख पंडित उनके पीछे-पीछे श्मशान पहुँच गए.
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श्मशान में उन्हें एक गधा दिखा जिसे देखकर एक ने कहा "राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठ्ति स बान्धवः" अर्थात् राजद्वार और श्मशान में जो आपके साथ खड़ा हो वही आपका भाई है. वे चारों उसे अपना भाई मानकर उसके गले से लिपट गए.
तभी वहाँ तेजी से भागता हुआ एक ऊँट आया तो उसको देखकर एक बोला "धर्मस्य त्वरिता गतिः" अर्थात् धर्म की गति तेज होती है. अब उन्होंने ऊँट को ही धर्म मान लिया. फिर उन्हें एक बात और याद आयी, "इष्टं धर्मेण योजयेत् " यानी धर्म को इष्ट से मिला दें. तो उन्हें लगा कि धर्म यानी ऊँट को इष्ट यानी गधे से मिलाना चाहिए और उन्होंने ऊँट के गले में गधे को बाँध दिया. जब उस गधे का मालिक धोबी आया तो उसे देखकर वे चारों मूर्ख वहाँ से भाग गए और एक नदी पर पहुँचे जिसमें एक पलाश का पत्ता तैर रहा था. उसे देखकर एक पंडित ने कहा "आगमिष्यति यत्पत्रं तदस्मांस्तारयिष्यति" अर्थात् जो पत्ता तैरता हुआ आयेगा, वही उद्धार करेगा. वो उस पत्ते पर लेट गया और डूबने लगा.
उसे डूबते देखकर दूसरे पंडित ने कहा "सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्धं त्यजति पंडितः" अर्थात् असली पंडित वही है जो पूरा विनाश देखकर आधे को बचा ले और आधे को जाने दे. उसने पंडित की चोटी पकड़कर उसकी गर्दन काट ली और बाक़ी शरीर बह गया.
बचे हुए तीन पंडित एक गाँव में पहुँचे जहाँ उन्हें तीन अलग-अलग घरों में शरण मिली.
एक पंडित को भोजन में सेवइयाँ दी गयीं तो उसे याद आया "दीर्घसूत्री विनश्यति" अर्थात् लम्बी चीजें नष्ट हो जाती हैं.
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दूसरे पंडित को रोटी दी गयी. उसे याद आया "अतिविस्तारविस्तीर्णं तद्भवेन्न चिरायुषम् " अर्थात् बहुत फैली हुई वस्तु आयु को घटाती है.
तीसरे पंडित ने वड़े देखकर सोचा ’छिद्रेष्वनर्था बहुली भवन्ति’ अर्थात् छेद वाली चीज़ से बुरा होता है.
यह सोचकर वह तीनों भूखे रह गए और उनकी मूर्खता का ख़ूब मज़ाक बना.
विष्णु शर्मा की लिखी पंचतंत्र (panchtantra kisne likhi) की इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि व्यवहार-बुद्धि के बिना विद्वान भी मूर्ख ही रहते हैं.
एक जगह पर सिन्धुक नाम का पक्षी रहता था जिसकी बीट में सोने के कण निकलते थे. एक बार उनसे एक बहेलिये का सामने सोने के कण वाली बीट कर दी और सोने के लालच में बहेलिये ने जाल फेंककर उस पक्षी को पकड़ा और पिंजरे में कैद कर लिया.
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फिर बहेलिये को डर लगा कि कहीं कोई व्यक्ति राजा को इस पक्षी के बारे में न बता दे तो वह स्वयं उसे राजा के पास ले गया.
राजा के मंत्री ने कहा “कोई भी पक्षी सोने की बीट नहीं करता”. मूर्ख बहेलिये की बातों के कारण मजाक ना बन जाए ये सोचकर राजा ने उस पक्षी को छोड़ दिया.
पक्षी उड़कर राज्य के प्रवेश-द्वार पर बैठा और वहाँ उसने सोने के कणों वाली बीट कर दी. फिर उड़कर जाते हुए बोला –
"पूर्वं तावदहं मूर्खो द्वितीयः पाशबन्धकः
ततो राजा च मन्त्रि च सर्वं वै मूर्खमण्डलम्”
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अर्थात् पहले मैं स्वयं मूर्ख था जिसने बहेलिये के सामने सोने के कणों वाली बीट करी. फिर बहेलिया मूर्ख निकला जो मुझे राजा के पास ले गया और फिर राजा और मंत्री तो सबसे बड़े मूर्ख निकले. यह राज्य तो मूर्खों की मंडली है.
यह कहानी बतलाती है कि, अपनी स्वयं की बुद्धि और विवेक से ही निर्णय लेना चाहिए.
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एक नगर में सागर दत्त नामक व्यापारी के बेटे ने एक किताब सौ रुपए में खरीदी. किताब में सिर्फ़ एक श्लोक लिखा था- जो वस्तु जिसे मिलने वाली होती है, उसे ज़रूर मिलती है, भगवान् भी इसे नहीं रोक सकते. इसलिए मैं किसी वस्तु के ना मिलने से दु:खी और अचानक मिलने से खुश नहीं होता. क्योंकि किसी और के भाग्य का हमें नहीं मिलता और इसी तरह जो हमें मिलना है वो किसी दूसरे को नहीं मिल सकता.
एक श्लोक वाली इस किताब का मूल्य जानकर पिता नाराज होता है और बेटे को मूर्ख बताकर घर से निकाल देता है.
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घर से निकाले जाने पर पुत्र दूसरे नगर चला गया और प्राप्तव्य-अर्थ नाम बताकर रहने लगा.
उस नगर के उत्सव में राजकुमारी चंद्रावती अपनी सहेली के साथ आयी हुई थी जहाँ उसे एक राजकुमार पसंद आ गया. उसने अपनी सहेली से उस राजकुमार को बुलाने के लिए कहा.
सहेली ने उसे राजकुमारी के कमरे के बाहर लटक रही रस्सी को पकड़कर रात में कमरे में चुपचाप मिलने आने के लिए बुलाया.
रात को राजकुमार तो नहीं आया लेकिन उसी समय प्राप्तव्य-अर्थ वहाँ से निकल रहा था. उसने रस्सी को लटकते देखकर उसे पकड़ा और राजकुमारी के कमरे में आ गया. राजकुमारी चंद्रावती उसके साथ बिस्तर पर लेट गयी और कहा कि वो उसे प्रेम करती है और विवाह करना चाहती है.
प्राप्तव्य-अर्थ के चुप रहने पर राजकुमारी ने इसका कारण पूछा. प्राप्तव्य-अर्थ बोला कि, जिसको जो मिलना होता है वो मिल ही जाता है. राजकुमारी को शक हुआ और उसने प्राप्तव्य-अर्थ को कमरे से भगा दिया.
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अब वो एक पुराने मंदिर में सोने के लिए गया जहाँ नगर-रक्षक अपनी प्रेमिका से मिलने के लिए आया हुआ था. नगर-रक्षक ने उसे कहा कि वो वहाँ से चला जाए.
नींद से परेशान प्राप्तव्य-अर्थ किसी दूसरी जगह की तलाश में पहुँचा, जहाँ नगर-रक्षक की पुत्री विनयवती अपने प्रेमी के इंतजार में बैठी हुई थी. अँधेरे में वो उसे अपना प्रेमी समझ बैठी. उसके चुप रहने का कारण पूछने पर प्राप्तव्य-अर्थ ने फिर से कहा “मनुष्य को अपने भाग्य का ही प्राप्त होता है” जिसे सुनकर विनयवती ने उसको वहाँ से भगा दिया.
वो फिर से सड़क पर आ गया, जहाँ एक बारात जा रही थी. वह बारात के साथ चल पड़ा.
जब कन्या मंडप में आई, उसी समय एक गुस्सैल हाथी वहाँ आ गया और दूल्हे समेत सब बाराती और लड़की पक्ष के लोग वहाँ से भाग गए. वहाँ खड़ी अकेली लड़की को प्राप्तव्य-अर्थ ने बचाया लेकिन बारातियों ने वापस आकर लड़की को अनजान युवक का हाथ पकड़े देखा और नाराज हो गए.
लड़की बोली इस युवक ने मुझे बचाया है इसलिए मैं अब इसी से शादी करूँगी. यह सुनकर विवाद हो गया और झगड़ा बढ़ने पर वहाँ राजा, राजकुमारी चंद्रावती और विनयवती भी पहुँच जाते हैं.
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राजा ने पूरी बात बताने के लिए कहा. प्राप्तव्य-अर्थ ने फिर वही बात बोली. राजा ने सभी से पूरी बात सुनी और राजकुमारी चंद्रावती की शादी प्राप्तव्य-अर्थ से तय कर उसे युवराज घोषित कर दिया. उसकी शादी विनयवती और उस तीसरी लड़की से भी हो गयी. अब प्राप्तव्य-अर्थ अपनी तीनों पत्नियों के साथ राजमहल में रहने लगा और बाद में उसने अपने परिवार को भी बुला लिया.
पंडित विष्णु शर्मा ने (panchtantra ka lekhak kaun hai) इस कहानी में बताया है कि दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम.
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बच्चों के लिए अब किताबों के अलावा वेबसाइट्स और वीडियोज़ को लर्निंग एड के रूप में उपलब्ध हैं. आप उन्हें ऑडियो- विजुवल इफेक्ट्स वाले वीडियोज़ में पंचतंत्र की कहानियाँ (bedtime stories in Hindi panchtantra) दिखाएँ जिससे उनके मन पर इन शिक्षाओं का गहरा असर पड़ेगा.
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Written by
Kavita Uprety
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