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Care for Baby
1 November 2023 को अपडेट किया गया
जन्म के बाद जैसे-जैसे बेबी बड़ा होता है, उसका विकास भी होता जाता है. वो आवाज़ देने पर रिएक्ट करता है, अपने हाथों से चीज़ों को पकड़ने की कोशिश शुरू कर देता है और फिर धीरे-धीरे कुछ आवाज़ें भी निकालने लगता है. लेकिन दो महीने की उम्र में बच्चा क्योंकि बोलकर अपनी बात नहीं बता सकता है इसलिए उसकी देखभाल (2 month baby care in hindi) पर ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत होती है; जैसे- उसकी भूख का ख़्याल रखना, उसके सोने, रोने और स्वास्थ्य से जुड़े संकेतों को समझना.
आइये आपके साथ शेयर करते हैं बेबी के डेवलपमेंट से जुड़े कुछ ऐसे टिप्स (2 month baby care tips in Hindi) जो 2 महीने के बच्चे की ठीक तरह से देखभाल करने में आपकी बहुत मदद करेंगे.
छोटे बच्चे के लिए भूख लगने पर माँ को बताने का तरीका है रोना. दो महीने का होते होते बच्चे को भूख थोड़ा ज़्यादा लगने लगती है और वो पहले से अधिक बार दूध माँगता है. ऐसे में जब बच्चा रोये तो आप समझ जाएँ कि उसे भूख लगी है.
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इस उम्र में बच्चे को ब्रेस्टफ़ीडिंग ही कराएँ जो उसके लिए सबसे अच्छा आहार है. ब्रेस्टफ़ीड में फैटी एसिड्स, लैक्टोज़, अमीनो एसिड्स, विटामिन, मिनरल्स और एंजाइम का ऐसा अनूठा मिश्रण होता है जो बच्चे के लिए एक परफेक्ट फीड का काम करता है.
न्यूबोर्न बेबी के लिए एक ब्रेस्ट का दूध ही काफ़ी होता है. लेकिन दो महीने के बच्चे की ज़रूरत थोड़ी ज़्यादा होने के कारण माँ को दोनों ब्रेस्ट्स का दूध पिलाना शुरू करना पड़ सकता है. ब्रेस्टफीडिंग के दौरान बच्चे को अपने प्रत्येक ब्रेस्ट से 10-20 मिनट तक दूध पिलाएँ जो उसके लिए पर्याप्त होगा. इससे अधिक समय तक न पीने दें.
अगर बच्चे को फॉर्मूला मिल्क देते हैं तो वह बच्चे की उम्र और ज़रूरतों के अनुरूप होना चाहिए. हर बार दूध पिलाने के बाद बच्चे को डकार ज़रूर दिलाएँ जिससे पेट की हवा निकल जाती है और गैस से होने वाली परेशानी और पेट दर्द को कंट्रोल करने में मदद मिलती है.
इसे भी पढ़ें : बेबी को स्तनपान कैसे कराएँ?
अब बात करते हैं बच्चे की नींद के बारे में. हर बच्चे की नींद से जुड़ी ज़रूरतें थोड़ी अलग हो सकती हैं. अमूमन एक 2 महीने का बच्चा दिन में 14 से 17 घंटे तक सोता है. इतनी नींद वह चार से छह बार में या उससे ज़्यादा बार सो कर पूरी करता है. यह पैटर्न 60 से 90 मिनट तक जागने के बाद 30 मिनट से लेकर दो घंटे की झपकी तक का हो सकता है.
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सबसे पहले आप अपने बच्चे के स्लीपिंग पैटर्न पर नज़र रखना शुरू करें और इस बात का ध्यान रखें कि उसको पूरी नींद मिले. दो महीने का बच्चा फ़ीड लेने के तुरंत बाद या या उसके आधे घंटे बाद थकान महसूस करने लगता है और फिर उसे नींद की ज़रूरत महसूस होती है. हालाँकि, कुछ बच्चे ज़रूरत से ज़्यादा एक्टिव होते हैं और नींद आने पर भी नहीं सोते हैं. ऐसे बच्चों के लिए स्वैडलिंग एक अच्छा ऑप्शन है जिससे वो शांत हो जाएँ और उन्हें ठीक से नींद आ जाए. कभी भी नींद के दौरान बच्चे का चेहरा ना ढकें और उसे इस तरह लपेटें कि उसके हाथ-पाँव चलते रहें. हमेशा पहले स्वैडलिंग के सही तरीके़ को सीखें और फिर बच्चे पर आज़माएँ.
इसे भी पढ़ें : 40 सेकंड में बेबी को कैसे सुलाएँ?
दो महीने का बच्चा अपने आस-पास की आवाज़, चेहरा और टच पहचानने और उस पर रिएक्ट करने लगता है. वह जानी-पहचानी आवाज़ें सुनकर अपने हाथ-पाँव हिलाता है, कई बार मुँह से आवाज़ें भी निकालता है और कई बार मुस्कुराता भी है. इसके साथ ही वो अपने आसपास के माहौल और कलरफुल चीज़ों को देखकर आकर्षित भी होता है. अपने दो महीने के बच्चे को इंगेज करने के लिए आप उससे बातें करें. उसके मुँह से निकली आवाज़ों को दोहराएँ. सरल और तुकबंदी वाले शब्द बोलें ताकि बच्चा उन्हें पहचान सके और उन पर रिएक्ट करे. उसे एज एप्रोप्रिएट कलरफुल खिलौने दें जिससे उसके विकास और लर्निंग में भी मदद मिलेगी.
छोटे बच्चों को कई गंभीर बीमारियों से बचाने के लिए वैक्सीन लगवाना बेहद ज़रूरी है. वैक्सीन बच्चे की बॉडी और इम्यून सिस्टम को जर्म्स की पहचान और उनसे लड़ना सिखाता है. डॉक्टर द्वारा दिये गए बच्चे के वैक्सीन रूटीन को फॉलो करें ताकि आपके बच्चे को सभी वैक्सीन टाइम से लगें. उसे रेगुलर हेल्थ चेक-अप के लिए डॉक्टर के पास लेकर जाएँ. इसके अलावा बच्चे की और उसके आस-पास के वातावरण की सफाई का ध्यान रखें जिससे बच्चे का इन्फेक्शन से बचाव हो सके.
जन्म के पहले दो महीनों में (2 month old baby care tips in Hindi) बच्चा बहुत तेज़ी से बढ़ता है और उसका वज़न बढ़ने के कारण वो गोल-मटोल दिखने लगता है. जैसे-जैसे उसकी मसल्स डेवलप होती जाती हैं, उसके हाथ और पैर लम्बे होने लगते हैं और वो उन्हें ज़्यादा हिलाने लगता है. अब बच्चा कई चीज़ों को पकड़ने की कोशिश शुरू कर देता है और उसकी पकड़ भी पहले से मज़बूत होती जाती है. बच्चे की इस ग्रोथ को बेहतर बनाने के लिए आप उसकी कलाइयों पर कलरफुल झुनझुना बाँध सकती हैं या प्ले जिम के नीचे उसे लिटाएँ जिसमें लगे खिलौनों को देखकर या झुनझुने की आवाज़ सुनकर वह आकर्षित होगा और अपने हाथ-पाँव ज़्यादा चलाएगा. इससे बच्चे की एक्सरसाइज होगी और उसकी मसल्स मज़बूत बनेंगी.
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दो महीने के बच्चे क्योंकि छोटे होते हैं और कई बार बहुत रोते हैं जिससे माँ परेशान हो सकती है. दो महीने में बच्चे का नर्वस सिस्टम मज़बूत होने लगता है जिसके कारण वो अपने आस-पास ज़्यादा ध्यान देना शुरू कर देता है. ऐसा करते हुए वो अक्सर थक कर रोने लगता है. एक माँ होने के नाते यह आपका काम है कि यह पता लगाएँ कि बच्चा क्यों रो रहा है और बच्चे को शांत करने के लिए आपको क्या करना चाहिए. माँ को चाहिए कि वह अपने बच्चे के रोने का कारण समझें और उसे अपनी गोद में ले जिससे बच्चा सेफ फील करता है. माँ के सानिध्य में बच्चे की मेन्टल हेल्थ मज़बूत बनती है और वो अपनी माँ के साथ ज़्यादा जुड़ाव महसूस करने लगता है. इसलिए जब भी आपका बच्चा रोए, तो उस पर अपना पूरा ध्यान दें. उसे गले लगाएँ और कम्फर्ट दे कर शांत करें.
इसे भी पढ़ें : लगातार रो रहे बच्चे को शांत कराने के कई सारे टिप्स
7. बेबी के अनुसार अपना शेड्यूल बनाएँ (Plan your schedule according to your baby)
दो महीने के बच्चे की परवरिश करना आसान नहीं होता है. इस समय उसका शरीर शारीरिक और मानसिक रूप से तेज़ी से विकसित होता है और ऐसे में उसका ध्यान रखना किसी चुनौती से कम नहीं है. इसके लिए बच्चे के हिसाब से अपना शेड्यूल सेट करें जो फिर आपका रूटीन बन जाएगा. ऐसा करने के बाद आप का टाइम बच्चे के सोने, जागने, भूख लगने आदि के हिसाब से एडजस्ट हो जाएगा. ऐसा करने के कुछ समय के बाद धीरे-धीरे बच्चे के टाइम टेबल को सेट करना शुरू करें; जैसे कि उसके स्लीप पैटर्न को समझें और उसे इस तरह एडजस्ट करें कि वो एक रूटीन बन जाए. इसी तरह उसकी फ़ीडिंग और नहलाने या मालिश का रूटीन भी तय कर दें जिससे आपके लिए पूरे दिन भर में बच्चे के सभी कामों का समय तय हो जाएगा और उसके बीच में आप अपने लिए भी कुछ वक़्त निकाल पाएँगी.
नवजात शिशु से लेकर दो महीने तक बच्चे की देखभाल (How to care 2 month baby in Hindi) में दो बातें सबसे ज़रूरी हैं; पहली है- बच्चे के रोने पर तुरंत उसे अटेण्ड करना जो आमतौर पर या तो भूख के कारण होता है या फिर नैपी गीली होने पर. दूसरा ज़रूरी काम है बच्चे को धीरे-धीरे एक रूटीन में ले कर आना ताकि पूरे दिन भर के दौरान सोने से लेकर खाने तक उसके सभी कामों का निश्चित समय तय हो जाए. ऐसा कर लेने के बाद माँ के लिए अपने छोटे बेबी की परवरिश को काफ़ी आसान बनाया जा सकता है.
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1. Manual for the Health Care of Children in Humanitarian Emergencies. (2008). Geneva: World Health Organization; 2008. 8, Newborn and young infant up to 2 months.
2. Perez BP, Mendez MD. (2023). Routine Newborn Care.
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Kavita Uprety
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